देहरादून : मंगलवार को अच्छी खबर आ सकती है। मैनुअल ड्रिलिंग में जुटे रैट माइनर्स और श्रमिकों के बीच दूरी सिर्फ 1 मीटर शेष रह गई है। केंद्रीय राज्यमंत्री वीके सिंह ने सुरंग में जाकर बचाव कार्य का जायजा लिया।
रैट माइनर्स द्वारा की जा रही मैनुअल ड्रिलिंग सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है। सोमवार शाम से अब तक टनल में एस्केप पैसेज 56.3 मीटर तैयार कर लिया गया है। 57 मीटर पर एस्केप पैसेज आर-पार हो जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अब मेटल के टुकड़े भी नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि रेस्क्यू जल्द पूरा कर लिया जाएगा।
जैसे-जैसे टीम मजदूरों के नजदीक पहुंच रही है वैसे-वैसे सुरंग के बाहर हलचल भी बढ़ गई है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री रिटायर्ड जनरल वीके सिंह सिलक्यारा पहुंच गए हैं। उन्होंने सुरंग में अंदर जाकर मैनुअल ड्रिलिंग का जायजा लिया। उधर, फंसे हुए 41 मजदूरों के परिजनों को तैयार रहने और मजदूरों के कपड़े और बैग तैयार रखने को कहा गया है।
सिलक्यारा में ऑगर मशीन के क्षतिग्रस्त टुकड़ों को सोमवार तड़के निकाल लिया गया था। इसके बाद से रैट माइनर्स मैनुअल ड्रिलिंग कर रही है। सेना की 30 सदस्यीय टीम रैट माइनर्स की मदद कर रही है। उधर, पहाड़ के ऊपर से भी खोदाई का काम सफलता के साथ चल रहा है। वर्टिकल ड्रिलिंग 40 मीटर हो चुकी है। शेष 46 मीटर ड्रिलिंग और होनी है। सुरंग बचाओ माइक्रो टनलिंग एक्सपर्ट क्रिस कपूर का कहना है कि बीती रात रेस्क्यू का काम अच्छा हुआ है। वर्टिकल और मैनुअल ड्रिलिंग के नतीजे सकारात्मक रहे हैं।
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव प्रमोद कुमार मिश्र ने मौके पर जाकर हालात का जायजा लिया। उनके साथ केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला और उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू भी थे। प्रधान सचिव ने सुरंग में फंसे मजदूरों और वहां मौजूद परिजनों से बातचीत की। खाने-पीने के सामान की जानकारी ली। सुरंग में फंसे मजदूरों की तरफ से गब्बर सिंह नेगी ने मिश्र से बात की।
कैसे काम कर रहे रैट माइनर्स
रैट यानि चूहा। पतले से पैसेज में अंदर जाकर ड्रिल करने वाले मजदूरों को रैट माइनर्स कहते हैं। रैट माइनिंग आमतौर पर कोयला उत्खनन के लिए किया जाता है। खासकर ऐसी जगहों पर जहां मशीन जाने के लिए जगह नहीं होती। ये 800 एमएम के पाईप में जाकर ड्रिल कर रहे हैं।
एक बार में रैट माइनिंग टीम के दो सदस्य पाइप में काम कर रहे हैं। इनके पास छोटे फावड़े, छोटी ट्रॉली, ऑक्सीजन मास्क व हवा को सर्कुलेट करने के लिए एक ब्लोअर है।
एक सदस्य खोदाई करता है, दूसरा मलबा ट्रॉली में भरता है। फिर ट्रॉली बाहर खींच ली जाती है। एक बार में ट्रॉली से छह से सात किलो मलबा ही निकल पाता है। इसलिए इसमें समय लगेगा। एक टीम के थकने पर दूसरी अंदर जाएगी।