देहरादून : सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने का अभियान चुनौती बना हुआ है। ऑगर मशीन डैमेज होने के बाद अब वर्टिकल और मैनुअल ड्रिलिंग की तैयारी है। वर्टिकल ड्रिलिंग आज शुरू हो सकती है,जबकि मैनुअल ड्रिलिंग लिए सेना को बुलाया जा रहा है। उधर, मौसम भी रेस्क्यू अभियान में चुनौती बन रहा है।
रेस्क्यू का आज 15वां दिन है। पाईप में फंसे ऑगर मशीन के ब्लेड और सॉफ्ट के टुकड़ों को काटकर बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से प्लाज्मा कटर पहुंच गया है। इसके साथ ही बीएसएनएल ने भी फंसे मजदूरों तक लैंडलाइन की सुविधा दे दी है।
उधर, वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी पूरी हो गई है। आज वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हो सकती है। मैनुअल ड्रिलिंग के लिए सेना को बुलाया जा रहा है। इधर, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज टनकपुर में सुरंग में फंसे श्रमिक पुष्कर ऐरी के घर जाकर उसके परिजनों को ढांढस बंधाया। मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि जल्द ही सभी को बाहर निकाल लिया जाएगा।
फोटो:- सुरंग में रेस्क्यू में जुटे विशेषज्ञ
रेस्क्यू में मौसम बड़ी चुनौती
रेस्क्यू अभियान में मौसम की वजह से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। मौसम विभाग ने अगले तीन दिनों के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग व पिथौरागढ़ समेत कई ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बारिश-बर्फबारी के आसार हैं। ऐसे में टनल में चल रहे राहत कार्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
मजदूरों को बाहर आने में वक्त
मजदूरों और रेस्क्यू टीम के बीच 60 मीटर की दूरी है। 21 नवंबर को अमेरिकन ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई थी। 25 नवंबर की सुबह जब 47मीटर ड्रिलिंग हो चुकी थी कि मशीन जवाब दे गई। लोहे के पाईप से टकराने के बाद मशीन खराब हो गई। उसके ब्लेड टूट गए और बरना अंदर फंस गया। अब शेष बची 12-13मीटर की ड्रिलिंग मैनुअल की जाएगी। इसमें कितना वक्त लगेगा,किसी को नहीं पता है।
फोटो:- श्रमिकों के परिजन
वर्टिकल ड्रिलिंग भी नहीं आसान
दूसरे विकल्प के रूप में अब पहाड़ के ऊपर से नीचे को ड्रिलिंग की जाएगी। जो खतरनाक तो है ही धीमी गति से भी होगी। ऊपर से नीचे की तरफ 90 मीटर खोदना होगा, जो बहुत आसान नहीं है। 47 मीटर ड्रिलिंग में तीन दिन लगे थे। 90 मीटर खोदने में 6-7 दिन लग सकते हैं। वो भी तब जबकि कोई व्यवधान न आए।
पूरी डैमेज हो गई ऑगर मशीन
ऑगर मशीन पूरी तरह डैमेज हो गई है। 22 नवंबर को ड्रिलिंग के दौरान मोटा सरिया सामने आ जाने से मशीन के ब्लेड टूट गए थे और सॉफ्ट फंस गया था। सॉफ्ट निकालने की कोशिश में मशीन का प्लेटफार्म हिल गया। मशीन का प्लेटफार्म बनाने में ही 35 घंटे लग गए। फिर सॉफ्ट निकालने की कोशिश में उसका 15 मीटर हिस्सा ही बाहर निकल सका और 32 मीटर हिस्सा अंदर ही रह गया। अब ये मशीन किसी काम की नहीं रह गई है।
फोटो:- लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कहना है कि ”ऐसी उम्मीद करना कि दो घंटे में हम उन्हें निकाल लेंगे, में समझता हूं ये सही नहीं है। वर्क फोर्स पर इसका गलत प्रेशर पड़ता है। रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी टीम भी रिस्क पर है, अंदर फंसे मजदूर भी रिस्क में हैं। हमें दोनों की सेफ्टी का ध्यान रखना होगा। ”