Lord Ganesha Uttrakhand : रुद्रप्रयाग में है विश्व का एकमात्र बिना सिर वाले गणेश का मंदिर, यह अनोखा मंदिर ‘मुंडकटा मंदिर’ नाम से है प्रसिद्ध

गणेश चतुर्थी पर मंदिर में होती है विशेष पूजा, साल भर रहता है देश-विदेश के श्रद्धालुओं का तांता

देहरादून: उत्तराखंड को देवी-देवताओं की भूमि माना जाता है। चार धामों के अलावा उत्तराखंड तमाम रहस्यमयी धार्मिक स्थल हैं। रुद्रप्रयाग जिले में भी है विश्व का एकमात्र बिना सिर वाले भगवान गणेश का मंदिर। ‘मुंडकटा’ नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर केदारनाथ आने वाले तीर्थ यात्रियों में विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है।

मुंडकटा गणेश मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम मुनकटिया में है। मुंडकटा गणेश को यह नाम दो शब्दों ‘मुण्ड’ और ‘कटा’ से मिला है। मुण्ड का अर्थ सिर होता है और कटा का मतलब विच्छेद होता है। गणेश चतुर्थी पर मंदिर में विशेष पूजा होती है। जिसमें देश विदेश से श्रद्धालु भाग लेते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार महादेव तपस्या के लिए गए हुए थे। तभी माता पार्वती ने हल्दी के लेप से एक मानव शरीर बनाया और उसमें प्राण फूंक दिए। बालक जब जीवित हुआ तो माता पार्वती ने उसे अपना पुत्र स्वीकार कर विनायक का नाम दिया।
विनायक को माता पार्वती अपनी गुफा के बाहर पहरे पर बिठाकर गौरीकुंड में स्नान करने चली गई। साथ ही माता पार्वती ने उन्हें सख्त हिदायत दी कि गुफा के अंदर कोई भी प्रवेश नहीं करना चाहिए। लेकिन, उसी समय महादेव का वहां आगमन हुआ। इस बात से अंजान कि महादेव ही उनके पिता हैं, विनायक ने उन्हें भी अंदर जाने से रोका।
काफी समझाने के बाद भी विनायक महादेव को अंदर जाने देने के लिए राजी नहीं हुए तो महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशुल से विनायक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब इस घटना की जानकारी माता पार्वती को हुई तो वह विलाप करने लगी।

 


इस पर भगवान शिव ने सभी देवताओं को आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जो जीव सबसे पहले नजर आएगा, उसका सिर काटकर लाया जाए। देवताओं को भगवान शिव द्वारा बताई गई शर्त के अनुसार एक सफेद हाथी मिला। जिसका सिर काटकर वह ले आए। महादेव ने हाथी का सिर गणेश के धड़ पर जोड़कर उन्हें फिर से जीवनदान दिया जिसके बाद भगवान गणेश गजानन कहलाए।

कहां है ‘मुंडकटा’ मंदिर

यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से 20 किमी और गौरीकुंड से सिर्फ चार किमी दूर है। यह त्रियुगी नारायण मंदिर के पास है। सोनप्रयाग से मुनकटिया तक पैदल यात्रा करनी होती है। देहरादून से यह 250 किमी दूर स्थित है।

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